Different agro climatic zones of Jharkhand | झारखंड के कृषि जलवायु प्रदेश

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 जब मिट्टी के प्रकार, फसल की उपज, वर्षा, तापमान और पानी की उपलब्धता के आधार पर एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र को अनेक छोटे क्षेत्रों में बांटा जाता है तब यह छोटे क्षेत्र कृषि जलवायु प्रदेश कहलाते हैं।

           झारखंड भारत के कृषि जलवायु प्रदेश VII के अंतर्गत आता है जिसे 'पूर्वी पठार एवं पहाड़ी क्षेत्र' कहा जाता है। झारखंड में तीन कृषि जलवायु प्रदेश हैं:-

Agro climatic zones of Jharkhand
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Agro climatic zones of India
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(1) Central and North Eastern Plateau Zone | मध्य उत्तर-पूर्वी पठार

विस्तार - संथाल परगना (साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा, दुमका, जामताड़ा, देवघर), उत्तरी छोटानागपुर (हजारीबाग, बोकारो, कोडरमा, गिरिडीह, धनबाद, चतरा, रामगढ़) एवं रांची जिला।
विशेषताएं:-
(क) इस क्षेत्र में अधिकांशतः मोटी बलुई मिट्टी पाई जाती है। इसके अलावा काली मिट्टी, अभ्रकमूल्क मिट्टी तथा थोड़ी जलोढ़ मिट्टी भी पाई जाती है।
(ख) यहां देर से मानसून आता है एवं पहले चला जाता है।
(ग) इस क्षेत्र में फरवरी-मार्च के महीनों में अधिकतर तालाब सूख जाते हैं।
(घ) इस क्षेत्र की प्रमुख फसलें धान, गेहूं, मक्का, मड़ुआ ज्वार बाजरा है।
(ङ) इस क्षेत्र में नदी के द्वारा भी सिंचाई की जाती है।
Rainfall pattern | वर्षा का पैटर्न
इस क्षेत्र में वर्षा का वितरण असमान है। यहां अधिकतर वर्षा बंगाल की खाड़ी शाखा से होती है। यह क्षेत्र मानसूनी वर्षा पर अधिक निर्भर है। इस क्षेत्र के उत्तर-पूर्वी भाग में मई के महीनों में तड़ित झंझा युक्त वर्षा हो जाती है जो आम के पौधों के लिए लाभदायक होता है इसी कारण इसे आम्र वर्षा भी कहते हैं। यहां का औसत वर्षा 140 से 152 सेंटीमीटर है।
Abiotic stresses | अजैविक तनाव
(क) इस क्षेत्र की मिट्टी की जलधारण क्षमता कम है जो कृषि के लिए जल की समस्या को बढ़ाता है।
(ख) वर्षा की अनिश्चितता एवं असमान वितरण के कारण फसलों की सिंचाई ठीक से नहीं हो पाती है। यह इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या है।
(ग) इस क्षेत्र में ठंडा के दिनों में गिरने वाला पाला रबी फसल के लिए नुकसानदायक होता है एवं रबी फसल काफी मात्रा में बर्बाद हो जाती है।
(घ) इस क्षेत्र की मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम है परंतु झारखंड के अन्य कृषि जलवायु प्रदेशों की अपेक्षा क्षेत्र की मिट्टी की उत्पादकता अधिक है।

(2) Western plateau | पश्चिमी पठार

 विस्तार - पलामू, गढ़वा, लातेहार, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा एवं खूंटी।
विशेषताएं :-
 (क) यह क्षेत्र पूरे झारखंड में सबसे अधिक ऊंचाई वाला कृषि जलवायु प्रदेश है।
 (ख) इस क्षेत्र में लेटराइट मिट्टी और लाल मिट्टी अधिक पाई जाती है।
 (ग) इस क्षेत्र की मिट्टी की जल धारण क्षमता कम है।
 (घ) इस क्षेत्र की मिट्टी की उपजाऊ शक्ति निम्न है।
 (ङ) इस क्षेत्र की प्रमुख फसलें धान, मक्का, गेहूं, दलहन तिलहन आदि हैं।
Rainfall pattern | वर्षा पैटर्न
 इस क्षेत्र में वर्षा का वितरण असमान है। यहां वर्षा की अनिश्चितता रहती है। इसके कुछ भाग तो सूखाग्रस्त रहते हैं।परंतु अन्य भाग में वर्षा सामान्य होती है। इस क्षेत्र के पाट प्रदेश में अन्य भागों की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है। यहां सामान्यतः दक्षिणी पश्चिमी मानसून के कारण वर्षा होती है।
Abiotic stresses | अजैविक तनाव
 (क) इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या मिट्टी की अम्लीय होना तथा उपजाऊ शक्ति का अति निम्न होना है। इसके कारण कृषि की दृष्टि से यह क्षेत्र पिछड़ा हुआ है।
 (ख) इस क्षेत्र की मिट्टी की जलधारण क्षमता कम है।
 (ग) इस क्षेत्र में वर्षा का असमान वितरण भी एक बड़ी समस्या है।
 (घ) इस क्षेत्र में तापमान भी अधिक होता है। परंतु ध्यातव्य है कि इस क्षेत्र में स्थित नेतरहाट राज्य का सबसे अधिक ठंडा क्षेत्र है।

(3) South eastern plateau | दक्षिण पूर्वी पठार

 विस्तार - कोल्हान प्रमंडल।
विशेषताएं :-
 (क) इस क्षेत्र की मिट्टी में धातु की अधिकता है।
 (ख) इस क्षेत्र की मिट्टी की जल धारण क्षमता भी निम्न है।
 (ग) इस क्षेत्र में वनों की प्रचुरता है।
 (घ) इस क्षेत्र की प्रमुख फसलें धान, ज्वार-बाजरा, गेहूं, मक्का आदि हैं।
 (ङ) इस क्षेत्र में नदी के द्वारा भी सिंचाई की जाती है।
 (च) यह क्षेत्र सागर प्रभावित जलवायु में आता है जिसके कारण यहां आर्द्रता बनी रहती है।
Rainfall pattern | वर्षा पैटर्न
 इस क्षेत्र में वर्षा का असमान वितरण पाया जाता है। इस क्षेत्र का पूर्वी भाग अधिक वर्षा प्राप्त करता है। यहां ग्रीष्म ऋतु में भी वर्षा हो जाती है। इस क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 142 सेंटीमीटर से 155 सेंटीमीटर है।
Abiotic stresses | भौतिक तनाव
(क) इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या मिट्टी में धातुओं के अंश होने के कारण मिट्टी का कम उपजाऊ होना है।