Climate of Jharkhand | झारखंड की जलवायु
कर्क रेखा झारखंड राज्य के लगभग मध्य से गुजरती है एवं राज्य में मानसूनी हवाओं का प्रभाव बना रहता है जिसके कारण झारखंड की जलवायु उष्णकटिबंधीय मानसूनी प्रकार की है।
राज्य का औसत तापमााान 25 डिग्री सेल्सियस है परंतु तापमान में स्थानिक विभिनता पाई जाती है (ऐसा इसलिए होता है क्योंकि राज्य के उच्चावच में अंतर पाया जाता है)। पाट प्रदेश का औसत तापमान ऊंचाई पर स्थित होनेेे के कारण 23 डिग्री सेल्सियस से भी कम होता है तो वहीं संथाल परगना का पूर्वी क्षेत्र, पलामू, गढ़वा, पूर्वी सिंहभूम, एवं चतरा के उत्तरी भाग का तापमान 26 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है एवं शेष राज्य का औसत तापमान 23 डिग्री सेल्सियस से 26 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है।
Climatic regions of Jharkhand | झारखंड के जलवायु प्रदेश
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (National Institute of Disaster Management - NIDM) ने झारखंड को तीन जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया है।
(१) मध्य उत्तर पूर्वी पठार
(२) पश्चिमी पठार
(३) दक्षिण पूर्वी पठार
(तीनों जलवायु प्रदेश के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए Click करें )
परंतु राज्य में तापमान और वर्षा में प्रादेशिक अंतर एवं अन्य विषमताएं में पाई जाती है जिसके आधार पर राज्य को 7 जलवायु प्रदेशों में बांटा जाता है:-
परंतु राज्य में तापमान और वर्षा में प्रादेशिक अंतर एवं अन्य विषमताएं में पाई जाती है जिसके आधार पर राज्य को 7 जलवायु प्रदेशों में बांटा जाता है:-
Climate of Jharkhand |
(१) महाद्वीपीय प्रकार
विस्तार - उत्तरी एवं उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र (गढ़वा, पलामू, पश्चिमी लातेहार, चतरा, उत्तरी, हजारीबाग, गिरिडीह, कोडरमा, पश्चिमी दुमका तथा गोड्डा जिला)।
विशेषता
इस जलवायु क्षेत्र को महाद्वीपीय प्रकार का कहा जाता है क्योंकि ग्रीष्म काल में यहां का औसत तापमान बहुत बढ़ जाता है और ठीक इसके उल्टा जाड़े के मौसम में तापमान बहुत नीचे तक चला जाता है। यह क्षेत्र झारखंड का सबसे कम वर्षा वाला क्षेत्र है। यहां की कुल वार्षिक वर्षा 114 सेंटीमीटर से 127 सेंटीमीटर तक होता है।
(२) उपमहाद्वीप के प्रकार
विस्तार - मध्यवर्ती क्षेत्र (पूर्वी लातेहार, दक्षिण चतरा, दक्षिणी हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, जामताड़ा एवं दक्षिणी पश्चिमी दुमका)
विशेषता
यह क्षेत्र भी लगभग महाद्वीपीय प्रकार का ही है परंतु अपेक्षाकृत वर्षा एवं आर्द्रता की थोड़ी अधिकता एवं तापमान में थोड़ी कमी के कारण यह उपमहाद्वीपीय प्रकार का बन जाता है। यहां की औसत वार्षिक वर्षा 127 सेंटीमीटर से 165 सेंटीमीटर के बीच होती है।
(३) डेल्टा प्रकार
विस्तार - पूर्वी संथाल परगना क्षेत्र (साहिबगंज तथा पाकुड़)।
विशेषता
इस जलवायु क्षेत्र की समानता बंगाल की जलवायु से की जा सकती है। राजमहल की पहाड़ी बंगाल की ओर से आने वाली आर्द्र हवाओं को रोकती है जिसके कारण राजमहल पहाड़ी के पूर्वी ढाल वाले क्षेत्र की जलवायु राज्य के अन्य भागों से भिन्न हो जाती है। यह क्षेत्र नॉर्वेस्टर (यह मानसून के पहले अप्रैल के मध्य से मई के मध्य के बीच आने वाला एक प्रकार का चक्रवाती तूफान जिसके कारण होने वाली तड़ित झंझा युक्त वर्षा होती है जो आम्र वर्षा भी कहलाती है) के प्रभाव में आने वाला क्षेत्र है जिसके कारण यहां डेल्टा प्रकार की जलवायु का निर्माण होता है। यहां का औसत वार्षिक वर्षा लगभग 151 सेंटीमीटर होता है। यहां का शीत ऋतु सुखद और सामान्य रहता है अर्थात इस क्षेत्र की वार्षिक तापान्तर कम रहता है।
(४) सागर प्रभावित जलवायु क्षेत्र
विस्तार - पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला खरसावां एवं पश्चिमी सिंहभूम का पूर्वी क्षेत्र।
विशेषता
यह क्षेत्र सागर प्रभावित क्षेत्र इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह भाग सागर से 100 से 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस कारण यहां लू एवं धूल भरी आंधीयां नहीं चलती हैं एवं जाड़े का मौसम झारखंड के अन्य क्षेत्रों की तुलना में सामान्य एवं कम लंबा होता है।किंतु ग्रीष्म काल अन्य क्षेत्रों के समान ही गर्म होता है।यह क्षेत्र भी नॉर्वेस्टर के प्रभाव क्षेत्र में स्थित है जिसके कारण मानसून से पहले यहां अक्सर तड़ित झंझा दिखाई देती है। दलमा एवं धालभूम क्षेत्र इसी जलवायु क्षेत्र में आते हैं। ग्रीष्म काल में यह क्षेत्र सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करता है। क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 140 सेंटीमीटर से 152 सेंटीमीटर तक होती है।
(५) आर्द्र वर्षा प्रकार
विस्तार - दक्षिण पश्चिमी क्षेत्र (पश्चिमी सिंहभूम का मध्य व पश्चिम भाग तथा सिमडेगा)।
विशेषता
इस क्षेत्र का दक्षिणी भाग ऊंचा एवं पहाड़ी है जिसके कारण यह क्षेत्र समुद्री प्रभाव से वंचित रह जाता है। इस क्षेत्र के पश्चिमी भाग से मध्य भारत से आने वाली गर्म हवाएं प्रवेश करती है जिससे तापमान में वृद्धि होता है परंतु यहां वनस्पति की अधिकता होने के कारण गर्मी का प्रभाव कम हो जाता है। वनस्पति की अधिकता होने के कारण यहां जाड़े का मौसम अधिक ठंडा होता है। यहां प्रायः शाम और सुबह में ठंडी हवाएं चलती है। यह राज्य का इकलौता क्षेत्र है जो मानसून के दोनों शाखाओं से वर्षा प्राप्त करता है जिसके कारण यहां का औसत वार्षिक वर्षा 152 सेंटीमीटर से अधिक होता है लेकिन पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण यहां वर्षा का अत्यधिक असमान वितरण देखा जाता है।
(६) तीव्र एवं सुखद प्रकार
विस्तार - रांची-हजारीबाग पठार
विशेषता
यह क्षेत्र रांची एवं हजारीबाग पठार के ऊंचाई पर स्थित होने के कारण कम गर्म रहता है और हिल स्टेशन का अनुभव कराता है। यहां अप्रैल और मई माह को छोड़कर कभी भी औसत अधिकतम तापमान 32.2 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं रहता। इसी कारण रांची को झारखण्ड का शिमला भी कहते हैं। यहां नार्वेस्टर के कारण छिटपुट वर्षा होती है तथा साथ ही मानसून के आरंभ से ही यहां वर्षा शुरू हो जाती है जिससे वातावरण आर्द्रता बनी रहती है। क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा लगभग 148 सेंटीमीटर होती है। यहां नवंबर के आरंभ से ही शीत ऋतु का प्रवेश हो जाता है।
(७) शीत वर्षा प्रकार
विस्तार - पाट क्षेत्र (लातेहार का दक्षिणी भाग, लोहरदगा एवं गुमला)
विशेषता
यहां की जलवायु रांची-हजारीबाग पठार जैसी ही होती है परंतु रांची-हजारीबाग पठार से ऊंचा होने के कारण अपेक्षाकृत अधिक ठंडा होती है। यह क्षेत्र राज्य की सबसे अधिक वर्षा प्राप्त करने वाला क्षेत्र है। अधिक वर्षा का होना, अधिक बादलों का आना, ग्रीष्म काल शीतल बना रहना, शीत ऋतुु में भी वर्षा होना एवं शीत ऋतु में शीतलतम हो जाना इस क्षेत्र की प्रमुख विशेषताएं हैं। यहां औसत वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से भी अधिक होता है। राज्य में सबसे अधिक वर्षा प्राप्त करने वाला नेतरहाट इसी क्षेत्र में स्थित है।
Weather of Jharkhand | झारखण्ड का मौसम
*ग्रीष्म काल (मार्च से मध्य जून तक)
इस ऋतु में झारखंड का औसत तापमान 29 डिग्री सेल्सियस से 47 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है। झारखंड में सर्वाधिक तापमान जमशेदपुर में होता है। पठारी भाग होने के कारण यहां मैदानी भागों की अपेक्षा लू का प्रकोप बहुत ही अधिक कम होता है। झारखंड में सर्वाधिक गर्म महीना मई का होता है।
*वर्षा काल (मध्य जून से अक्टूबर तक)
झारखंड में मानसून का आगमन लगभग 10 जून से होता है। झारखंड में मानसून से कुल वर्षा का 80% भाग प्राप्त होता है तथा उत्तर पश्चिमी विक्षोभ एवं नॉर्वेस्टर से होने वाली वर्षा मिलकर शेष 20% पूरा करती है। यहां बंगाल की खाड़ी वाली शाखा से अधिक वर्षा प्राप्त होती है। राज्य का मध्य एवं पश्चिमी भाग बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर दोनों की शाखा से वर्षा प्राप्त करती है। झारखंड की औसत वार्षिक वर्षा 140 cm है। नेतरहाट का पठार सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला क्षेत्र है जबकि चाईबासा का मैदान सर्वाधिक कम वर्षा प्राप्त करने वाला क्षेत्र है। Indian Meteorological Department के Annual Rainfall Statistics Report (page number 58) के अनुसार सर्वाधिक वर्षा वाला जिला पूर्वी सिंहभूम है जबकि गढ़वा और पलामू कम वर्षा प्राप्त करने वाले जिले हैं। झारखंड में उत्तर से दक्षिण एवं पूरब सेे पश्चिम की ओर क्रमशः वर्षा कम होती जाती हैं।
*शीतकाल (नवंबर से फरवरी तक)
शीत ऋतु में झारखंड का औसत तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से 21 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। राज्य का सर्वाधिक ठंडा महीना जनवरी होता है। राज्य का सर्वाधिक ठंडा स्थान नेतरहाट है।
0 Comments
Post a Comment
If you have any doubt then you can ask in comment section.