Disaster in Jharkhand | झारखंड में आपदा

अचानक और अल्प समय में घटित होने वाली ऐसी घटना जिससे मानव जीवन और संपत्ति की भारी क्षति हो, आपदा कहलाती है। झारखंड में आने वाली आपदाओं का वर्णन अग्रलिखित है :--

(1) Earthquake | भूकम्प


 भूकम्प की संवेदनशीलता की दृष्टि से झारखंड को जोन(ii), जोन(iii) और जोन(iv) में रखा गया है। जोन(ii) से अधिक संवेदनशील जोन(iii) और इससे अधिक संवेदनशील जोन(iv) होता है।

     जोन(iv) में केवल साहिबगंज और गोड्डा जिला आंशिक रूप से आते हैं। Jharkhand Disaster Management Plan 2011 के अनुसार जोन(iii) में 15 जिले और जोन(ii) में 7 जिले आते हैं।

(2) Drought | सूखा 

यदि किसी क्षेत्र में सामान्य से 25% कम वर्षा हो तो सामान्य सूखा, 25% से 50% तक कम वर्षा होने पर मध्यम सूखा और 50% से कम वर्षा होने पर गंभीर सूखा की स्थिति होती है।
झारखंड में आर्कियन युग के चट्टान अधिकतर क्षेत्रों में पाए जाते हैं जिनमें छिद्र की कमी होती है जिस कारण वर्षा का पानी की अल्प मात्रा ही जमीन के नीचे भूजल के रूप में संरक्षित हो पाती है। इसके अलावा झारखंड का पठारी क्षेत्र होने के कारण भी यहां से वर्षा का पानी का अधिकतर भाग बह कर चला जाता है। झारखंड का लगभग सभी जिला सूखे से ग्रसित हैं लेकिन मुख्य रूप से झारखंड का उत्तर पश्चिमी भाग सूखे की समस्या से अधिक ग्रसित है। इसमें गढ़वा पलामू, चतरा, लातेहार और लोहरदगा जिला शामिल हैं। पलामू जिला सूखा की दृष्टि से सर्वाधिक संवेदनशील है परंतु 2019 में केंद्र सरकार ने झारखंड के 10 जिले को सूखाग्रस्त घोषित किया था जिसमें पलामू शामिल नहीं था। केंद्र सरकार द्वारा घोषित 10 सूखाग्रस्त जिलों में से बोकारो को सर्वाधिक सूखाग्रस्त माना गया था। संबंधित जानकारी के लिए Click here 

(3) Lightning | वज्रपात

 आकाश में चमकने वाली बिजली का जमीन पर गिरना ही वज्रपात कहलाता है जिसके कारण झारखंड में प्रत्येक वर्ष अनेक लोगों और मवेशियों की मृत्यु हो जाती है।
  Jharkhand Disaster Management Plan 2011 के अनुसार झारखंड के 9 जिले (पलामू, चतरा, लातेहार, कोडरमा, रांची, गिरिडीह, हजारीबाग, लोहरदगा एवं दुमका) वज्रपात की आपदा से ग्रस्त हैं। इसमें सबसे गंभीर रूप से प्रभावित जिला पलामू है।

  राज्य के श्री कृष्ण लोक प्रशासन संस्थान द्वारा इस समस्या से निपटने के लिए एक विशेष ट्रेनिंग मॉड्यूल का निर्माण किया गया है।

(4) Flood | बाढ़

 झारखंड पठारी क्षेत्र में आता है जिसके कारण यहां बाढ़ की समस्या कम है। केवल आंशिक रूप से साहिबगंज जिला, जो गंगा से सटी हुई है, बाढ़ से प्रभावित है। जमशेदपुर, सरायकेला एवं रांची अनियोजित नगरीकरण के कारण Flash Flood से प्रभावित हैं।

(5) Fire in Forest | वनों में आग

 झारखंड मुख्य रूप से शुष्क पतझड़ वनों की अधिकता वाला राज्य है जिसके कारण गर्मी के मौसम में वनों में आग की समस्या उत्पन्न हो जाती है। मार्च और अप्रैल के महीनों में महुआ एवं साल के फूल व बीजों के संग्रहण हेतु लगाई जाने वाली आग भी वनों में आग उत्पन्न होने का कारण है।
 झारखंड के 9 जिले वनों में लगने वाली आग की समस्या से प्रभावित हैं। इनमें गढ़वा, पलामू, लातेहार, चतरा, हजारीबाग, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, गुमला एवं सिमडेगा हैं।

(6) Mining Hazards | खनन दुर्घटना

 झारखंड में खनिजों की अधिकता के कारण यह भारत का रूर प्रदेश कहलाता है जिसके कारण यहां खनन कार्य काफी मात्रा में होता है और सुरक्षा में चूक के कारण दुर्घटनाएं होती रहती हैं। भारत के इतिहास में सबसे बड़ी खान दुर्घटना धनबाद की चासनाला के खदानों में घटी थी जिसमें कोयले की खदान में पानी घुस जाने के कारण लगभग 375 लोग मारे गए थे। 1880 के दशक से झरिया के कोयला खान में आग लगी हुई है जो अनेक वैज्ञानिक प्रयासों के बावजूद भी बुझाया नहीं जा सका है।
   झारखंड के 9 जिले (लातेहार, रामगढ़, धनबाद, लोहरदगा, गिरिडीह, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम एवं कोडरमा) इस आपदा से अधिक प्रभावित हैं (Jharkhand disaster management plan 2011 के अनुसार)।

(7) Elephant Attacks | हाथियों का आक्रमण

 हाथी झारखंड का राजकीय पशु है एवं राज्य में इनकी संख्या अधिक है।राज्य में हाथियों की कुल अनुमानित संख्या 700 के आसपास है। राज्य के पलामू, दुमका, सारंडा, हजारीबाग, दालमा आदि के जंगलों में सर्वाधिक हाथी पाए जाते हैं। हाथियों के आक्रमण का मुख्य कारण इनके प्राकृतिक आवासों में मानव हस्तक्षेप है जिसके कारण ये जंगल से निकलकर रिहायशी इलाकों में पहुंच जाते हैं। इसके अलावा सुगंधित महुआ फूलों की ओर आकर्षित होना भी हाथियों के आक्रमण का एक प्रमुख कारण है।

Disaster Management | आपदा प्रबंधन

 किसी भी प्रकार की आपदा से निपटने हेतु तीन चरणों में इसकी निपटान की व्यवस्था की जाती है -- आपदा पूर्व व्यवस्था, आपदा के दौरान व्यवस्था एवं आपदा के बाद व्यवस्था।
  भारत सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम,2005 के तहत 2006 में राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन किया गया है। 2006 में ही राष्ट्रीय आपदा कार्रवाई बल (NDRF) का गठन किया गया। देश में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना 2016 से लागू की गई है।
  आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 14 (1) राज्यपाल को एक राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन करने की शक्ति प्रदान करता है। इसी शक्ति का प्रयोग करते हुए झारखंड राज्य में झारखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (JSDMA) का गठन 28 मई 2010 को किया गया है जिसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री करता है तथा इसमें अधिकतम 9 सदस्य हो सकते हैं। इस प्राधिकरण की सहायता करने के लिए झारखंड के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक राज्य कार्यकारी समिति होती है। राज्य में NDRF के तर्ज पर राज्य आपदा मोचन बल (SDRF) का गठन किया गया है जिसका शिर्ष अधिकारी DGP होते हैं।। आपदा के दौरान राहत कार्य का समुचित संचालन हेतु राज्य आपदा रिस्पांस कोष का गठन भी किया गया है जिसमें 75% हिस्सेदारी केंद्र सरकार की एवं 25% हिस्सेदारी राज्य सरकार की होती हैं। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि झारखंड में अक्टूबर, 2004 में ही आपदा विभाग का गठन हो गया था।
 झारखंड में जिला स्तर पर जिला दंडाधिकारी (District Magistrate) या जिला समाहर्ता (District Collector) या उपायुक्त (Deputy Commissioner) की अध्यक्षता में जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) का गठन किया गया है।
           झारखंड में प्रखंड स्तर पर प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO) की अध्यक्षता में प्रखंड आपदा प्रबंधन समिति का गठन किया गया है।
       झारखंड में ग्राम स्तर पर एक आपदा प्रबंधन समिति का गठन मुखिया की अध्यक्षता में होता है।

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:---

* वर्ष 2005 से श्री कृष्ण लोक प्रशासन संस्थान, रांची द्वारा आपदा प्रबंधन हेतु प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
* राज्य में आपदा प्रबंधन को सुनिश्चित करने हेतु 'आपदा प्रबंधन ज्ञान-सह-प्रदर्शन केंद्र'(सृजन) का विकास किया जा रहा है। इसके लिए विभिन्न शैक्षिक और तकनीकी संस्थान कार्य कर रहे हैं जो इस प्रकार हैं :--
   संस्थान अवस्थिति       प्रयोजन 
 बिरसा कृषि विश्वविद्यालय  रांची सूखा के लिए
 आई. एस. एम.  धनबाद खनन के लिए
 बी. आई. टी.  मेसरा  भूकंप के लिए
 झारखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (JSAC)  रांची बाढ़, जंगल की आग एवं सूखा के लिए
 मेकाॅन  रांची  औद्योगिक आपदा के लिए

सृजन के ये केंद्र सूचना प्रदान करने, संचार, प्रसार प्रविधियोंं तथा जागरूकता के प्रसार के उपकरण के रूप में का कार्य करते हैं।
* 2015 में 'विद्यालय सुरक्षा कार्यक्रम' राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के सहयोग से चलाया गया था।