Geological History of Jharkhand | झारखंड का भूगर्भिक इतिहास

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झारखण्ड की भूगर्भिक संरचना का इतिहास पृथ्वी के प्रारंभिक भूपटल का इतिहास जितना पुराना है। भू वैज्ञानिकों ने झारखंड की भूगर्भिक संरचना के इतिहास को निम्नलिखित भागों में बांटा है:-

(1) Archaean | आर्कियन क्रम 

आर्कियन क्रम की चट्टाने धरती की प्राचीनतम चट्टाने हैं (पृथ्वी के तरल से ठोस बनने से बनी चट्टानें)। इनकी चट्टानों में जीवाश्म में नहीं पाया जाता है क्योंकि उस समय जीवों का विकास नहीं हुआ था। इस अवस्था की चट्टानों को दो भागों में बांटा जाता है- आर्कियन क्रम तथा धारवाड़ क्रम। 
    आर्कियन क्रम की चट्टानों का निर्माण पृथ्वी की तरल अवस्था से ठोस होने के क्रम में हुआ है तो वहीं धारवाड़ क्रम की चट्टानों का निर्माण आर्कियन क्रम के अपरदन एवं निक्षेपन से हुआ है। धारवाड़ क्रम में धात्विक खनिज(लोहा, तांबा, सोना,निकेल आदि) का जमाव बड़े पैमाने पर हुआ है। यह चट्टानें झारखंड के कोल्हान प्रमंडल में प्रमुखता से पाया जाता है जिसके कारण झारखंड में इन्हें कोल्हान श्रेणी के नाम से जाना जाता है।

(2) Vindhyan | विंध्यन क्रम

 विंध्यन चट्टानों का निर्माण कड़प्पा क्रम (यह मुख्यतः दक्षिण भारत में पाया जाता है) के बाद हुआ है। झारखंड में विन्ध्यन क्रम के अवशेष मुुख्यतः सोन नदी के क्षेत्र में पाया जाता है। पारसनाथ पहाड़ विंध्यन पर्वत का ही भाग है।

(3) Carboniferous | कार्बोनिफेरस क्रम

 गोंडवाना भूखंड का हिमानीकरण इसी से काल में हुआ है। झारखंड सहित पूरा भारत इस समय हिम के चादरों से ढक गया था। इसके अवशेष नदियों के निचले भागों में पाया जाता है। झारखंड के दक्षिण पूर्वी भाग में तालचेर श्रेणी में इसके अवशेष पाए गए हैं। कार्बोनिफरस हिमानीकरण के बाद इस क्षेत्र में सरिताओं का धीरे-धीरे विकास हुआ।

(4) Permian-triassic | पर्मियन-ट्रियासिक क्रम

 यह कार्बोनिफरस हिमानीकरण के बाद की अवस्था है। इस काल में उच्च भूमि का खूब अपरदन हुआ। कराकोरम श्रेणी(हिमालय) के उत्थान के कारण झारखंड में सोन और दामोदर नदी घाटी में भ्रंश पड़ना इस काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना थी जिसने इस क्षेत्र की संपूर्ण अपवाह प्रणाली को प्रभावित किया। इसके अवशेष धालभूम में बजरी के रूप में पाए जाते हैं।

(5) Gondwana | गोंडवाना क्रम

 इस काल को कोयला युग के नाम से भी जाना जाता है। सोन और दामोदर नदी में भ्रंश के कारण जो पेड़ पौधे थे वे सभी नीचे धंस गए और कालांतर में वे कोयले के रूप में परिवर्तित हो गए।

* (Cretaceous) क्रिटेशियस युग में झारखंड में दक्कन लावा के समान ही लावा उद्गार हुआ जिसे राजमहल ट्रैप के नाम से जाना जाता है। यह दुमका, गोड्डा तथा साहेबगंज जिले में विस्तृत है।

(6) Cenozoic | सिनोजोइक क्रम

इस काल के शुरुआत तक संपूर्ण छोटानागपुर का पठार अपरदन क्रिया के कारण मैदान की अवस्था में आ गया था। इस काल में हिमालय के तीन क्रमिक उत्थानों के कारण छोटा नागपुर के पठार का भी तीन अवस्थाओं में उत्थान हुआ जिसके कारण यहां की नदियां पुनर्जीवित हो गईं। इस काल में पाट क्षेत्र एवं रांची-हजारीबाग पठार के निर्माण के साथ-साथ राजमहल ट्रैप का भी उत्थान हुआ। इसके कारण आने की जलप्रपातों का भी निर्माण हुआ।

(7) New deposit | नूतन निक्षेप

इस काल में अनेक नदियों के निक्षेपण के कारण समप्राय भूमि का निर्माण हुआ। पंचपरगना का मैदान, देवघर का अपरदित निम्न भूभाग, अजय बेसिन क्षेत्र, उत्तरी व दक्षिणी कोयल बेसिन आदि इस युग के परिणाम हैं।

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